चीताखेड़ा -13 अक्टूबर। इस साल की विदाई लेता मानसून सत्र एक बार फिर विगत चार से पांच दिनों से आसमान में बादलों ने डेरा डाले रखा है जो हल्की-हल्की फुहारें बुंदाबांदी चल रही है। रविवार को आखिरकार बादलों से रहा नहीं गया और चीताखेड़ा क्षेत्र में प्रातः 9 बजे से ही तेज गति से बारिश प्रारंभ हो गई जो साढ़े 11 बजे तक तो अनवरत रुक-रुककर चल रही थी।
कभी तेज तो कभी रिमझिम तो कभी बुंदाबांदी चलती रही। वर्तमान में बारिश से हुए भारी नुक़सान का प्रशासन ने फसलों सर्वे तक शुरू नहीं करवाया। किसानों की फसलों में अतिवृष्टि से तो कभी अल्प वर्षा तो कभी शीतप्रकोप से नुकसान होने पर उनकी भरपाई करने का मौका आता है तो सरकार हो या बीमा कंपनी चाहे प्रशासनिक अधिकारी ऐसे मौके पर गूंगे-बहरे और धृतराष्ट्र क्यों बन जाते हैं।
विदाई लेने के बजाए बारिश का एक बार फिर आगमन हो गया है। इस समय किसानों के खेतों में सुख चुकी खरीफ सीजन की फसलों की कटाई कार्य चल रहा है। रबी सीजन की फसलों की बुवाई के लिए खेतों को तैयार करना है बारिश के चलते किसान न तो फसलों की कटाई कर पा रहे हैं और ना ही खाली हुए खेतों की हकाई जुताई कर पा रहे हैं।
अतिवृष्टि से फसलों में भारी नुक़सान हुआ है वहीं दूसरी ओर खरीफ सीजन की फसलों के भाव ओंधे मुंह गीरे हुए हैं फिर ऊपर से रबी सीजन की फसलों के लिए खेत तैयार करना है खेतों की हकाई जुताई जैसा खेत होने को होता है और फिर बारिश आ जाती है। बारिश की लुकाछिपी के चलते किसान आर्थिक और मानसिक रूप से तनाव में आ गया है।
गोपालपुरा के कृषक रामचंद्र मीणा के खेत में सोयाबीन की फसल कटी पड़ी हुई है। खेत में पानी भर गया। देवीयां ग्वाल के कृषक रामेश्वर गुर्जर ने बताया है कि मेने मेरे खेत में चार बीघा खेत में मूंगफली की फसल बोई थी फसल पक कर तैयार हो गई और उखाड़कर भी पूरियां रखी हुई हैं और बारिश के आ जाने से मूंगफली में दाने फिर से अंकुरित हो जाएंगे। ऐसे समय में सरकार और प्रशासन तथा बीमा कंपनी को चाहिए कि नुकसान की भरपाई की जाएं।
शनिवार को एक बार फिर सुबह से ही शुरू हुई तेज बारिश से खेतों में पानी भर गया है। सीजन में किसानों का पीला सोना कहे जाने वाली सोयाबीन फसलों की कटाई कार्य चल रहा है मुंगफली की फसल भी उखडाई कार्य चल रहा है। किसान सबसे पहले तो सरकार और फसल बीमा कंपनी की रीतिनिति के चलते खासा परेशान हैं, फिर ऊपर से फसलों में दाम बढने के बजाए घट गए हैं
अब इनके साथ-साथ प्रकृति भी किसानों से रुठी हुई है। सरकार, बीमा कंपनी के किसान विरोधी निर्णय से और बैमौसम बारिश के चलते किसान खून के आंसू रो रहा है। आज किसानों के बहते खून के आंसू कोई पोंछने वाला नहीं है।