चीताखेड़ा -7 अक्टूबर । नीमच जिले के तहसील जीरन का चीताखेड़ा से राजस्थान रंभावली मार्ग पर चीताखेड़ा की पंचायत क्षेत्र का मजरा गांव माताकाखेडा की पावन धरा पर 431 वर्ष पुराना अतिप्राचीन आरोग्य देवी महामाया आवरी माता जी का अलौकिक मंदिर जो प्रमुख स्थलों में शुमार है। कभी थी विरान जगह,आज जनआस्था का बन गया केंद्र। जो भक्तों के लिए चमत्कारिक धाम भी है। यह आने वाले सभी श्रद्धालुओं के दर्शनों को पाकर समस्त रोगों से मुक्ति पाने का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
मां आवरी का यह स्वरूप शक्ति का स्वरूप है, जो भक्तों के दुःख को दूर करता है। माता के मंदिर में वर्ष में एक बार चैत्र नवरात्र मास में नौ दिवसीय विशाल मेले का आयोजन मेला समिति द्वारा आयोजित करवाया जाता है, इस दौरान यहां की छटा अलग ही दिखाई पड़ती है। इस शुभ अवसर पर मंदिर में श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ता है।दूर दूर से भक्त लोग यहां माता आवरी की दिव्य दर्शनों हेतु आते हैं। इस अवसर पर मंदिर में भजन संध्या, कवि सम्मेलन, भजन कीर्तन ,जागरण एवं भंडारे का विशेष आयोजन किया जाता है।
आदिशक्ति की भक्ति का दौर विगत दिवस 3 अक्टूबर से शुरू हो गया है। ऐसे जिले में देवी के धाम पर इन दिनों भक्तों का जमघट लगा हुआ है। जिले में प्राचीन इतिहास व मान्यताओं के चलते वर्षों पुराने स्थित देवी का मंदिर जन आस्था का केंद्र बन गया है। आवरी माता के इस धाम पर असाध्य रोगों से मुक्ति के साथ अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए भी भक्तों के नवरात्रि के इस दौर में विशेष रूप से पहुंचने का सिलसिला चल रहा है। लकवा पीडित रोगी यहां बड़ी संख्या में आते हैं ।
क्षेत्र में आवरी माता जी के इस मंदिर से हजारों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। यहां नवरात्रि के समय साल में एक बार चैत्र नवरात्रि में नौ दिनों तक विशाल मेला लगता है।
*आवरी माता मंदिर का महत्व-------*
महामाया आवरी माता जी के इस मंदिर में लोगों की गहरी आस्था है। यह मंदिर विगत 431 सालों से हजारों भक्तों के अटूट विश्वास का केंद्र है, लोगों की मान्यता है कि सैकड़ों वर्षों पुराना बड़ का पेड़ (वट वृक्ष) विद्यमान है
जिनके तने पर जड़ों में माता की प्रतिमा विराजमान हैं विशेष रूप से वटवृक्ष और इनके जड़ों में विराजित मां जगदम्बा की परिक्रमा लगाने और विभुति लगाने मात्र से लकवाग्रस्त रोगियों के बेजान अंगों में जान फूंकने की क्षमता रखती हैं आवरी माता जी। माता के दर्शनों से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। आवरी माता जी का यह मंदिर चमत्कारों से भरा हुआ है। समस्त भक्तों को माता के इस चमत्कारी रूप का फल भी प्राप्त होता है। यहां आने वाले रोग ग्रस्त लोग निरोगी होकर लौटते हैं। मां के दिव्य दर्शनों को पाकर सभी दुःखों का नाश होता है तथा हृदय में भक्ति का भाव जागृत हो जाता है। यहां के वातावरण में शांति एवं सुख का आभास समाहित है, जो प्रत्येक व्यक्ति को भक्तिमय कर जाता है।
*नवरात्र में जौ बोने का विशेष महत्व है --*
पौराणिक मान्यताओं में जौ को अन्नपूर्णा का स्वरूप माना गया है। सृष्टि का पहला अनाज जौ ही है,नवरात्र उपासना में जौ उगाने का शास्त्रीय विधान है, जिससे सुख समृद्धि और शांति प्राप्ति होती है। नवरात्र में भगवती दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए जौ उगाए जाते हैं।जौ को देवकार्य, पितृ कार्य व सामाजिक कार्यों में अच्छा माना जाता है।
ऋषि मुनियों को सभी धान्यों में जौ सर्वाधिक प्रिय है। इसी कारण ऋषि तर्पण जौ से किया जाता है। पुराणों में कथा है कि जब जगत पिता ब्रह्मा ने ब्रह्माण्ड का निर्माण किया, तो वनस्पतियों के बीच उगने वाली पहली फसल जौ ही थी।
नवरात्र के नवमी को अंतिम दिन जौ (वाड़ी) का विसर्जन किया जाता है। जिसे मालवी (गांवडेली) भाषा में नवडता उठाई जाती कहा जाता है।